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भटकती आत्मा भाग - 9

                       भटकती आत्मा भाग– 9 

  
     
मनकू ने हंसते हुए कहा -   "यह कह रही है कि गांव के लोग बहुत अशिष्ट हैं, विदेशियों के साथ अच्छा सलूक करना नहीं जानते"।
   "अच्छा, यह लोग कितने सलूक वाले होते हैं"।
    जानकी ने अब बोलना उचित समझा। वह डपट कर बोली  -    "तुम लोग उसे क्यों भला बुरा कह रहे हो , वह अच्छे मन से मदद करने आई और तुम लोग गलत समझ रहे"।
  मनकू ने हंसते हुए कहा -   
   "हां जानकी देखो न मैं समझा रहा हूं इन्हें। इनको गलतफहमियां हो गई हैं हम लोगों के प्रति"।
जानकी ने कहा -    "नहीं बहन यह लोग तेरी बेतकल्लुफी से विचलित हो गए थे, इसलिए ऐसा  कहा था" l 
   "व्हाट" मैगनोलिया ने कहा।
" यह नहीं समझ पा रही है तुम्हारी बात, मैं समझा दे रहा हूं"।
 फिर वह घूमा मैग्नोलिया की ओर – "देखो मैगनोलिया हम उसी जगह मिलेंगे शाम को, अब तुम जाओ"|
कान में फुसफुसाकर कहा मनकू ने l
  मैगनोलिया घोड़े पर चढ़कर चली गई l

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   "तुम क्यों चली गई थी वहां"?  – मनकू ने कहा 
  " क्या करूं तुमको हमेशा हम देखना मांगता हय"।
   मनकू -    "अगर उन लोगों को संदेह हो जाता तब"?
" कभी ना कभी तो मालूम होगा ही"।
" लेकिन क्यों अभी से सब जान जायें"।
   "ठीक है हम अब नहीं जाएगा वहाँ"।
   मैग्नोलिया ने रूठते हुए कहा।
" नहीं मैगनोलिया गुस्सा मत करो। मैं भी बराबर तुमको अपनी आंखों के सामने ही रखना चाहता हूं, परंतु समाज से डर जाता हूं। अभी से बात मालूम हो जाने पर बेकार परेशानी होगी"।
" ठीक है ठीक है, छोड़ो इन बातों को, देखो सूरज कितना अच्छा लगता हय यहाँ से"।
   " हाँ देखो यहां से डूबता हुआ सूरज ! आखिरी सांस लेता हुआ सूरज ! मुझको डर लगता है कहीं हमारा प्यार भी इसी प्रकार डूब ना जाए"।
  मैग्नोलिया  -    "तुम नाहक डरता हय, हमारा प्यार कभी खत्म नहीं हो सकता"।
 
         -   ×     -     ×     -      ×   -

उषा की लालिमा प्राची के प्रांगण में अनुरंजित थी l सूर्यदेव उषा से मिलने को  उतावले हो रहे थे, परंतु उनके भाग्य में प्रिया मिलन की सुखद अनुभूति कहां ? उनका रथ प्राची के गवाक्ष से झांकने लगा परंतु उषा देवी शर्म से मुंह छुपा कर प्रयाण कर चुकी थी। सूर्य देव ने अपनी रश्मियों का जाल फेंका, उषा को पाने के लिए लेकिन प्रयास व्यर्थ गया। उनके स्वागत् में पक्षी गण चहचहाने लगे। कलियां प्रस्फुटित होकर अद्भुत जगत को देखने लगी।
   गांव के अखाड़े में मनकू अन्य साथियों के साथ व्यायाम करने में तल्लीन था। कुछ देर के बाद दंड संचालन का अभ्यास करने लगा l उसके साथी उसे प्रोत्साहित कर रहे थे। ग्रामीण युवकों की यह दिली इच्छा थी कि इस बार रनिया गांव की ही जीत हो। क्योंकि बार-बार सरहुल के त्यौहार के उपलक्ष में प्रदर्शित प्रतियोगिता में दूसरे-दूसरे गांव की विजय होती थी, परंतु रनिया गांव को हार ही मिलती थी। उन युवकों की आशा मनकू पर ही बँधी हुई थी।
  ग्रामीण बालाएं हाथों में गगरियाँ लिए उस रास्ते से गुजरने लगीं। कुछ खड़ी होकर उन लोगों के शारीरिक कौशल को देखने लगीं। जानकी की निगाहें मनकू के पुष्ट शरीर पर चिपक  रह गई।।कुछ युवतियां जानकी को छेड़ने लगीं। जानकी अपने भाग्य पर गौरवान्वित होने लगी। अब एक मिश्रित गान-स्वर वातावरण में गूंज उठा। सभी युवतियां पनघट पर जा रही थीं। जानकी अपनी सहेलियों के साथ आगे बढ़ गई। इधर मनकू उन युवतियों की हरकत से बेखबर अपने कार्य में व्यस्त था। जानकी को क्या पता कि मनकू का प्रेरणा स्रोत वह नहीं है,उसकी प्रेरणा तो मैगनोलिया थी।

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       समय व्यतीत होता रहा,मनकू और मैगनोलिया का प्रेम परवान चढ़ता रहा । दोनों को एक दूसरे से मिले बिना चैन नहीं मिलता था । दिनभर मनकू अपने खेतों में काम करता,एवं जीविकोपार्जन का अन्य काम पिता के साथ मिलकर करता,परन्तु संध्या समय और कभी कभी रात्रि में भी निर्धारित स्थान पर मैगनोलिया से अवश्य मिलता । अक्सर रात्रि में जब वे मिलते तो एक दूसरे में खोए घंटों पत्थर की शिला पर लेटे रहते,एक दूसरे का हाथ थामे बैठे रहते । तब मौन भी उनकी भाषा बन जाती थी । समय व्यतीत होने के साथ दोनों का प्रेम प्रगाढ़ होता रहा । पिता के द्वारा समझाने का असर मनकू पर कुछ भी नहीं हुआ था । वह मैं मैगनोलिया से संबंध तोड़ नहीं सकता था,उससे मिले बिना रह नहीं सकता था ।
दोनों एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करने का स्वप्न देखते रहे । मैगनोलिया के संसर्ग में मनकू कुछ अंग्रेजी सीख गया था और मैगनोलिया को भी उसने अपनी सादरी भाषा सिखला दी थी अब । मैगनोलिया उसके साथ कभी अंग्रेजी मिश्रित हिंदी तो कभी अंग्रेजी मिश्रित सादरी में बात कर लेती ।

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आज फिर दोनों रात के समय अपने निर्धारित स्थान पर एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले बैठे हुए थे । बहुत देर तक वे दोनों मौन हो एक दूसरे को देखते रहे । फिर मनकू ने मैगनोलिया के सिर को अपनी गोद में रख लिया । मैगनोलिया पैर फैलाकर पत्थर की शिला पर लेट गई । मनकू प्रेम पूर्ण दृष्टि से मैगनोलिया को निहारता रहा । वृक्षों के पत्तों की ओट से छन छन कर चांदनी आ रही थी । इस चांदनी में मंगोलिया का चेहरा उसे अत्यंत लुभावना प्रतीत हो रहा था । वह मुग्ध दृष्टि से बहुत देर तक निहारता रहा उसे।
  प्यार से मैगनोलिया के कपोलों को सहलाते हुए मनकू ने कहा -  
  "डियर चार दिनों के बाद नीचे बस्ती में बहुत बड़ा मेला लगेगा,सरहुल का त्यौहार है l उस दिन मैं कुछ खेल दिखाऊंगा तुम आओगी न वहां"?
   "लेकिन मेरे वहां जाने से टोमको बुरा लगता है न ! टोम ने तो मना किया था अपने गांव में जाने से तभी तो मैंने बंद कर दिया वहां जाना ! और अब टोम अबी हमको जाने को कहता"?
" नहीं मैग्नोलिया उस दिन तुम्हारा आना जरूरी है,नहीं तो मैं खेल नहीं दिखा सकता,और मेरा गांव हार जाएगा"।
  "अच्छा ऐसा बात है तो हम जरूर  जाएगा वहाँ। अब तो टोम खुश हय"?
" हां तुम जरूर आना वहां, बड़ा मजा आएगा"|
" क्या-क्या होगा वहां"?
  "आदिवासी लोक नृत्य, लोक गीत तथा बड़ा सा जुलूस निकलेगा। सब लोग एक जगह इकट्ठा होंगे, फिर शुरू होगा खेलकूद का प्रतियोगिता"।
  "अच्छा अम भी नृत्य में भाग लेगा"।
" लेकिन तुम्हें तो नाचने आता ही नहीं है"?
  "अरे हां मैं तो नाचना नहीं जानता हूं तुम सिखा दो ना"।
"अच्छा मैं सिखलाता हूं तुम्हें, खड़ी हो जाओ"।
  परंतु मैगनोलिया बैठी रही। मनकू खड़ा हो गया था | एक लोक गीत गुनगुनाने लगा था। फिर उसकी निगाह बैठी हुई मैग्नोलिया पर चली गई और उसने शब्दों का पुष्प बिखेरा -  "स्टैंड अप डियर मैगनोलिया एंड अप स्टार्ट"।
मैगनोलिया मुस्कुराती हुई उठ खड़ी हुई और मनकू के समीप चली आयी। मनकू ने कहा   -   "अपना हाथ दो"।
मैगनोलिया ने अपना हाथ नि:संकोच मनकू के हाथ में रख दिया।
  मनकू ने कहा -   "ऐसे नहीं, हाँ - हाँ ऐसे"।
  दोनों ने अपनी-अपनी बाहों को फंसा लिया था। मनकू गीत के लय पर अपने पैरों को आगे-पीछे कर रहा था। मैग्नोलिया वैसा करने में अपने को असमर्थ पा रही थी। कुछ प्रयास के बाद वह भी ठीक से पैरों को आगे पीछे करने में सफल हो गयी। लोकगीत जंगल के जर्रे जर्रे पर तैरता रहा और कुछ देर के बाद आखरी सांस लेकर शांत हो गया।
  मनकू संतुष्ट होकर बोला -  
       "तुम तो बहुत जल्दी नृत्य सीख गई डियर मैगनोलिया"।
   "येस डियर माइकल। मैं अंग्रेज का बेटी हय ना,हम लोग किसी का अनुकरण जल्दी कर लेता हय"।
  मनकू शायद नहीं सुन पाया,क्योंकि वह तो भाव विह्वल होकर मैगनोलिया को अपने सीने से चिपकाए हुए था। कब दोनों के अधर आपस में उलझ गये पता ही न चला। तंद्रा भंग तब हुई जब उल्लू की कर्कश आवाज फिजा में तैरने लगी।
   मैगनोलिया ने कहा -   "अच्छा डियर अब हम जाना मांगता है"।
   मनकू  -  "मुझे छोड़ने का मन तो नहीं करता है,फिर भी तुम्हारे पिता का  ख्याल तो करना ही पड़ेगा l इसीलिए  जाओ मैगनोलिया"।
  "अच्छा हम चला गुड नाइट डियर"। 
   "गुड नाइट" -     कहता हुआ मनकू दिल को अपने हाथों से सहलाने लगा।
    
          क्रमशः             

  निर्मला कर्ण 

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